पटना [अरविंद शर्मा]। आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर राष्ट्रीय जनता दल (राजद) प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने बिहार में कांग्रेस को फिर अपनी सियासी गुगली में फंसा लिया है। गरीब सवर्णों के आरक्षण के मुद्दे पर कांग्रेस के साथ महागठबंधन के अन्य घटक दलों के सामने भी दुविधा है। राजद ने आर्थिक आधार पर आरक्षण का विरोध कर अपने परंपरागत वोट बैंक को खुश करने की चाल चली है, जो साथी दलों को रास नहीं आ रही है।
असमंजस में कांग्रेस
सवर्णों को साधकर बिहार में अपना आधार बढ़ाने की जुगत में जुटी कांग्रेस के सामने असमंजस है कि वह गठबंधन की राजनीति में राजद के साथ कैसे पेश आए। यही हाल हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) का भी है। ‘हम’ सुप्रीमो जीतनराम मांझी ने तो सवर्णों के लिए 15 फीसद आरक्षण की पैरवी कर दी है। अब अपने स्टैंड की हिफाजत करते हुए लालू से निपटने में उन्हें मुश्किल आ रही है।
अतीत में बिहार में कांग्रेस को सवर्णों से बड़ा सहारा मिलता रहा है। यह वोट बैंक मंडल आंदोलन के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) व जनता दल यूनाइटेड (जदयू) की ओर शिफ्ट हो गया। कांग्रेस ने रही-सही साख 2000 के विधानसभा चुनाव नतीजे के बाद लालू की गोद में बैठकर खत्म कर ली।